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गोडसे गांधी संवाद

02 Oct

आजकल रामायण संवाद चल रहा इसी परिपेक्ष में
गोडसे गांधी संवाद
(आज के दौर के हिसाब से)

नाथू- मैंने जब पांव छुए थे तब भी आपको अंदाजा नहीं हुआ?

बापू- नाथू मैंने देख लिया था तुम्हारे पास पिस्टल भी है।

नाथू- फिर भी आपने मुझे नजदीक आने दिया?

बापू- मेरा समय पूरा हो चुका था, तुम्हारा समय आने देना देश हित मे नहीं था सो तुम्हें पास आने दिया।

नाथू- मतलब ?

बापू- अगर तुम्हें पकड़वा देता तो तुम माफी मांग लेते और मुझे अपने मूल्यों के कारण तुम्हें माफ करना पड़ता।

नाथू- और मेरे मूल्य ?

बापू- तुम्हारे पास मूल्य थे ही कहाँ?, तुम तो नफ़रत का बीज लेकर आये थे, उस बीज को मैं वृक्ष नहीं बनने देना चाहता था।

नाथू- मेरे मूल्य थे! , मैं गोली मारने के बाद भागा नहीं, वहीं खड़ा रहा।

बापू- वो मूल्य नहीं थे। तुम भागे इसलिए नहीं थे क्योंकि तुम मुझसे बड़ा होना चाहते थे, तुम्हें लगता था मैं हीरो हूँ, असल में तुम भी गांधी हो जाना चाहते थे । तुम चाहते थे वो भीड़ तुम्हें कंधों पर उठा ले।

नाथू- मगर आपने भी तो देश के दो टुकड़े होने दिए।

बापू- वो मैं कभी नहीं चाहता था, मैं बस शांति चाहता था, धर्म के आधार पर दो देशों का प्रस्ताव मेरा नहीं था।

नाथू- परंतु मुझे भी आज देश मे लोग बहुत मानते है

बापू- हाँ सही कह रहे हो , इसलिए आज भी चार लोग इकट्ठा करने के लिए भी तुम्हें मानने वालों को मुझे ही “गाली” देनी पड़ती है।

नाथू- तो मैंने क्या गलत किया? , जब अलग देश ले लिया तो सबको पाकिस्तान चले जाना चाहिए।

बापू- लेकिन अब तो तुम्हे मानने वाले बोल रहे है के अखण्ड भारत बनाना है?
(वो कैसे बनेगा?)

नाथू- तो ठीक तो है।

बापू- अभी जो देश मे 20 करोड़ है उनसे तो इतनी नफरत करते हो, उधर से 14 करोड़ और आ गए तो क्या करोगे?

नाथू- तब अखण्ड भारत तो बन चुका होगा न !

बापू- पर तुम्हें मानने वाले तो कहते है वो तो दुगनी रफ्तार से बच्चे पैदा करेंगे।

नाथू- तब तो उन सबको उधर चले जाना चाहिए।

बापू- फिर तो उनके सब कलाकार , वैज्ञानिक, प्रोफेसर, साहित्यकार, फौजी, फिल्मकार , गीतकार और सब निचले दर्ज़े के कारीगर वो भी सब चले जाएंगे? देश का नुकसान होगा उन कार्यो को कौन करेगा जो वो करते आये है?

नाथू- तो उन सबको हिन्दू बना देंगे

बापू- फिर तो तुम्हारा मुद्दा ही खत्म , फिर लड़ोगे किस से , धर्म की रक्षा किस से करोगे, हिन्दू राष्ट्र किसकी लाशों पर बनाओगे , धर्मों रक्षति रक्षत: का क्या होगा?
फिर तो सबको रोटी रोज़गार देना होगा, क्या वो तुम्हारे लोगो की प्राथमिकता है?

नाथू- नहीं नहीं आप समझे नहीं ??

बापू – क्या सोच रहे हो, इससे आगे का जवाब तो व्हाट्सएप पर भी नहीं आया होगा ।
सुनो…
“किसी का धर्म अंततः उसके और उसके बनाने वाले के बीच का मामला है और किसी का नहीं”

धर्म का सार्वजनिक प्रदर्शन होना ही नहीं चाहिए। धर्म श्रेष्ठता का मसला नहीं है। नेताओं को भी धर्म के सार्वजनिक प्रदर्शन से बचना चाहिए। धर्म के नाम पर जो ये भीड़ देखते हो ये इबादत के लिए इकट्ठी नहीं होती , ये बस ये दिखाना चाहती है के देखो हम संख्या में इतने है। इसी संख्या का उपयोग राजनीति अपने नफे नुकसान के हिसाब से कर लेती है।

अफसोस ये है यही बात न समझना हिंदुओं के अलावा मुसलमानो की भी समस्या है। यह तब भी थी और आज भी है।
मैं उसे धार्मिक कहता हूं जो दूसरों का दर्द समझता है।

नाथू- हम तो बस देश मे एकता अखण्डता और शांति चाहते हैं।

बापू- असल मे एकता अखंडता और शांति का मतलब तो तुम समझते ही नहीं हो, तुम्हारी समस्या मुसलमान नहीं है!

नाथू- तो ?

बापू- तुम्हारी समस्या है साम्प्रदायिकता, जो मूलतः तुम्हारा स्वभाव है।
जब सब मुसलमान यहाँ आ जाएंगे तब भी तुम जाति , धर्म, ऊंच ,नीच के आधार पर वैमनस्य बोओगे और लड़ते रहोगे वही तुम्हारा मूल स्वभाव है। समझ आया?

नाथू- नहीं

बापू- चलो एक कहानी सुनो।
“एक गाँव मे एक औरत अपने 4 बच्चों 2 लड़की 2 लड़के और पति के साथ रहती थी। पति मेहनती था, औरत भी घर के काम करती। परंतु औरत मे “मैं” का भाव था। सो घर के हर अच्छे कार्य का श्रेय उसे मिलता, परंतु कुछ गड़बड़ हो जाने पर वह दोषारोपण करती।
(आज की सरकार की तरह)
पति पत्नी में अक्सर झगड़ा होता । बच्चों को लगने लगा पिता कलह का कारण है। बच्चे बड़े हुए तो पिता गुजर गए। बच्चों को लगा कलह खत्म हुई पिता चले गए।
कुछ दिन ठीक रहा परंतु घर मे कलह जारी रही। बड़ी लड़की से अक्सर उस औरत का झगड़ा होता। बड़ी लड़की का विवाह हो गया।
कुछ दिन शांति से गुजरे अब दूसरी बड़ी लड़की से घर मे कलह शुरू हो गयी। अब कलह की दोषी वो ठहराई गयी। उसका विवाह हुआ और वो भी चली गयी।
अब छोटे लड़के से विवाद होने लगे। छोटे लड़के ने भी घर छोड़ दिया। अब बडा लड़का और वो औरत झगड़ने लगे ।

आज भी उस परिवार को ये समझ नहीं आ रहा कलह की मूल वजह कौन है,
तुम्हें समझ आया ?”

नाथू- नहीं

बापू- जानते हो क्यों नही समझ आया?

नाथू- नहीं

बापू- क्योंकि तुम खुद वजह हो, तुम ये देख ही नहीं पा रहे के सब।सदस्यों से होने वाली कलह में जो एक चीज़ समान है वो है वो औरत और कहीं उसे अपना नजरिया बदलने की जरूरत है, वही हाल तुम्हारा भी है , तुम और तुम्हें मानने वाले मूल स्वभाव से ही साम्प्रदायिक हो। जब कोई भी नहीं रहेगा तो भी तुम स्वयं पर गर्व करके अपने इतिहास और अपने आप से लड़ने लगोगे।’

नाथू- जो भी हो अब मेरी भी मूर्ति बनने लगी है, और मंदिर भी।

बापू- तब भी तुम्हें ये जानकर बहुत अफसोस होगा के मेरा नाम वहाँ भी तुमसे पहले आएगा।

नाथू- ऐसा क्यों?

बापू- क्योंकि मंदिर या मूर्ति के सामने लगे शिलालेख पर ये तो लिखना ही पडेगा के तुमने कौन सा “महान कार्य” किया था।

नाथू- अरर्र…..अरे बापू !!!!!!😰😰

नाथू- हाँ नाथू, इसीलिए मुझे बापू कहा ही जाता है।

#GandhiJayanti #GandhiReturns

 
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Posted by on October 2, 2022 in Uncategorized

 

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