देश भर में गरीबी को लेकर मोंटेकनुमा बहसों के साथ जो तथ्य और आंकड़े पिछले कुछ सालों में सामने आये हैं, उसने गरीब और गरीबी की परिभाषाओं को लगातार उलझाने का काम किया है. अब तक की तमाम सरकारें हर बार गरीबों की संख्या कम होने का दावा करती रही हैं लेकिन न गरीब कम हुये और ना ही गरीबी. उलटे हमारी अर्थव्यवस्था ने पिछले दो दशकों में इनकी संख्या में भयावह तरीके से इजाफा किया है और बेशर्म सरकारी दस्तावेज लगातार झूठ गढ़ने में लगे हुये हैं.
भारत सरकार के योजना आयोग ने 19 मार्च 2012 को प्रेस में जारी एक नोट के द्वारा घोषणा की कि हमारे देश में गरीबी घटी है. इसके अनुसार पूरे देश में सन् 2004-05 की तुलना में सन् 2009-10 में गरीबी 7.3 प्रतिशत घटी है. पहले गरीबी 37.2 प्रतिशत थी, जो अब 29.8 प्रतिशत हो गई है. इसी नोट के हवाले से योजना आयोग ने बताया कि गावों के लोग प्रतिदिन 22.42 रूपये पर तथा शहर के लोग 28.65 रूपये पर गुजर बसर कर सकते है. अर्थात गावों में प्रति व्यक्ति, प्रतिमाह 672.80 रूपयों तथा शहर में प्रति व्यक्ति, प्रतिमाह 859.60 रूपयों में अपनी जीविका चला सकता है. गांव तथा शहरों में जो व्यक्ति इतना कमा लेता है, वह गरीबी की रेखा में आता है तथा इससे कम पैसा खर्च कर पाने वाले ही गरीब है. इस नतीजे पर पहुंचने के लिये योजना आयोग ने सुरेश तेंदुलकर समिति की अनुशंसाओं को अपना पैमाना बनाया है.
इससे पहले अर्जुन सेनगुप्ता समिति ने अप्रैल 2009 के अपने प्रतिवेदन में कहा था कि भारत की 77 प्रतिशत जनता गरीब है. इसे एन.सी.सक्सेना समिति ने 50 प्रतिशत तथा मानव विकास रिपोर्ट 2010 ने 55 प्रतिशत माना है.
वास्तव में सुरेश तेंदुलकर समिति ने भारत में गरीबों की संख्या इसकी जनसंख्या का 37.2 प्रतिशत माना था, जिसे योजना आयोग अब 29.8 प्रतिशत कह रहा है. सवाल यह उठता है कि किस आधार पर ये गणनायें की जा रही है. विश्व स्तर पर एक मानक तय कर दिया गया है कि गावों में रहने वाले व्यस्क स्त्री एवं पुरूषों को प्रतिदिन 2400 कैलोरी तथा शहर में रहने वाले व्यस्क स्त्री एवं पुरूषों को 2100 कैलोरी का भोजन मिलना चाहिये. यदि इतना कैलोरी (ऊर्जा का मानक) का भोजन मिल सकता है तो वह गरीब नहीं है, उससे कम कैलोरी मिलने वाले ही गरीब है. अब इन महाशयों को कौन समझाये कि केवल खाना खाकर ही नहीं रहा जा सकता है. रहने के लिये एक छत, पहनने के लिए कपड़े, चिकित्सा तथा शिक्षा क्या हमारे देश में मुफ्त में मिलती है. इनके खर्चो को कौन गिनेगा? इस कारण गरीबी का पैमाना ही गलत है तथा इससे मिलने वाले आंकड़े तो गलत होंगे ही.
खैर, बहस को आगे बढ़ाने के लिये प्रतिदिन 2100/ 2400 कैलोरी के भोजन को मान कर ही हम आगे बढ़ते है. यदि तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट को गहराई से देखा जाए तो पायेंगे कि इस समिति ने मनमुताबिक आंकड़ों को पाने के लिये कैलोरी की चोरी की है. तेंदुलकर समिति ने जिस कैलोरी का उपयोग किया है, वह ग्रामीण क्षेत्रों के लिये 1820 कैलोरी है जो मानक 2400 कैलोरी से 580 कैलोरी कम है. तथा शहरी क्षेत्रों के लिये 1795 कैलोरी का उपयोग किया है जो मानक 2100 कैलोरी से 305 कैलोरी कम है. इस प्रकार कुल 885 कैलोरी की चोरी कर गरीबी की रेखा को कम किया है. हमारे योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहूवालिया वैसे भी आंकड़ों की हेरा फेरी कर वास्तविकता को छुपाने में माहिर हैं.
अब यदि हम पुलिस विकास एवं अनुसंधान ब्यूरों के आदर्श जेल मैनुअल को देखें तो प्रतिदिन कैदियों को जो खाना देना है, वह 50 रूपयों से कम में कही नहीं मिलेगा. जरा आंकड़ों पर एक नज़र डालें.
जेल में प्रतिदिन की खाद्य वस्तु | मात्रा |
अनाज (बाजरा सहित) | 600 ग्राम |
दाल | 100 ग्राम |
सब्जी (हरी, पत्तेदार समेत) | 250 ग्राम |
मछली (मटन) या | 100 ग्राम |
दूध या | 500 मि.ली. |
घी (सप्ताह में दो बार) या | 15 ग्राम |
मूंगफली | 100 ग्राम |
दूध/ दही | 50/ 100 मि.ली. |
गूराम (भूना हुआ) | 60 ग्राम |
गुड़ | 20 ग्राम |
तेल | 30 ग्राम |
नमक | 30 ग्राम |
इमली | 15 ग्राम |
जीरा या तेजपत्ता | 5 ग्राम |
हल्दी | 2 ग्राम |
धनिया | 5 ग्राम |
मिर्ची | 5 ग्राम |
प्याज | 25 ग्राम |
चाय या कॉफी | |
शक्कर (सफेद) | 50 ग्राम |
सरसों | 2 ग्राम |
काली मिर्च | 3 ग्राम |
लहसुन | 2 गाम |
नारियल | 1/20 हिस्सा |
हालांकि इसके अलावा भी कैदियों को साबुन, कपड़े, बिस्तर तथा चिकित्सा उपलब्ध करायी जाती हैं. अर्थात भारत सरकार सजायाफ्ता कैदियों को जो भोजन देती है, योजना आयोग के उपाध्यक्ष उससे कम देकर भी उन्हें गरीब नहीं मानते हैं. वे तो गावों के लिये 22.42 रूपये तथा शहरों के लिये 28.65 रूपयों का मानक तय कर बैठे हैं. यदि रेल मंत्रालय द्वारा तय किये गये मूल्यों को भी देखे तो शाकाहारी नास्ता 18 रूपये में, शाकाहारी थाली 22 रूपये में तथा चाय 3 रूपये में मिलना चाहिये. इसके हिसाब से भी प्रतिदिन का भोजन 65 रूपयों से कम नहीं होगा. ये आंकड़े पूर्व-तटीय रेलवे के हैं.
अब सवाल यह उठता है कि क्यों हमारे देश में गरीब हैं? अर्थव्यवस्था के विकास का फायदा किसे मिल रहा है? संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2011-12 के अनुसार वर्तमान बाजार मूल्य पर भारत का सकल घरेलु उत्पादन 89,12,178 करोड़ रूपयों का है. 2011 के जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 121 करोड़ है.
अब यदि सकल घरेलु उत्पादन को सभी बाशिंदों को बराबर बांट दिया जाये तो हर एक के हिस्से में 73,654.36 करोड़ रूपये आता है. इसका अर्थ यह निकलता है कि असमान वितरण ही गरीबी का मुख्य कारण है. जो उत्पादन में भागीदारी निभाते हैं, उन्हें उत्पादन में से न्यायोचित हिस्सा नहीं मिलता है. फिर इनके हिस्से को किसने गबन कर लिया है, यह है वास्तव में बहस का मुद्दा. केवल गरीबी की रेखा तथा कितने गरीब है यह देखना ही काफी नहीं है. देखना यह पड़ेगा कि ये गरीब क्यों हैं.
अब हम इस आंकड़े को देखें, जिसमें भारत में सबसे ज्यादा वेतन पाने वाले दस व्यक्तियों का नाम है तथा उनके वार्षिक से लेकर प्रति सेकंड तक वेतनमान की गणना की गई है. सबसे अधिक वेतन नवीन जिंदल को मिलता है. यह प्रतिदिन 19.37 लाख रूपये है जो कि 22.42 रूपयों से 86,396 गुणा है. अर्थात यदि 22.42 रूपयों में 2400 कैलोरी का भोजन मिल सकता है तो श्री नवीन जिंदल प्रतिदिन 20 लाख 73 हजार और 505 कैलोरी का भोजन खरीद सकते है. दूसरे शब्दों में कहें तो नवीन जिंदल को प्रतिदिन जितना वेतन मिलता है, उससे प्रतिदिन 86,396 व्यक्ति 2400 कैलोरी का भोजन कर सकते हैं.
नवीन जिंदल या देश के सबसे ज्यादा वेतन (मुनाफा नहीं) पाने वाले को प्रति सेकंड 22.42 रूपया मिलता है, जो योजना आयोग द्वारा खींची गई गरीबी की रेखा है. कितनी बड़ी खाई है गरीब व सबसे ज्यादा वेतन पाने वाले के बीच. वह भी तब, जब प्रतिदिन के वेतन को 24 घंटो में बांटा गया है. वास्तव में तो इसे 8 घंटों में बांटा जाना चाहिये था.
सर्वाधिक वेतन पाने वाले भारतीय (टैक्स कटौती के पश्चात) |
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नाम |
कंपनी |
वार्षिक वेतन करोड़ में |
मासिक वेतन |
प्रतिदिन का वेतन लाखों में |
प्रति घंटे का वेतन हजारों में |
प्रति मिनट का वेतन रुपये में |
प्रति सेकेंड का वेतन रुपये में |
नवीन जिंदल |
जिंदल स्टील |
69.756 |
5.81 |
19.37 |
80.73 |
1345 |
22.42 |
कलानिधि मारन |
सन टीवी |
37.08 |
3.09 |
10.30 |
42.91 |
715.27 |
11.92 |
कावेरी मारन |
सन टीवी |
37.08 |
3.09 |
10.30 |
42.91 |
715.27 |
11.92 |
पवन मुंजाल |
हीरो होंडा |
30.88 |
2.57 |
8.57 |
35.74 |
595.67 |
9.92 |
बी एल मुंजाल |
हीरो होंडा |
30.638 |
2.55 |
8.51 |
35.46 |
591.01 |
9.85 |
तोषिका नाकागावा |
हीरो होंडा |
30.03 |
2.50 |
8.34 |
34.75 |
579.28 |
9.65 |
सुमिहिशा फुकुडा |
हीरो होंडा |
29.91 |
2.49 |
8.30 |
34.61 |
576.96 |
9.61 |
ओंकार कंवर |
अपोलो टायर्स |
29.69 |
2.47 |
8.24 |
34.36 |
572.72 |
9.54 |
पी पटेल |
कैडिला हेल्थ |
28.63 |
2.38 |
7.95 |
33.13 |
522.27 |
9.20 |
कुमार एम बिरला |
आदित्य बिरला |
28.467 |
2.37 |
7.90 |
32.94 |
549.13 |
9.15 |
इन सभी सर्वाधिक वेतन पाने वाले प्रथम 10 लोगों का वार्षिक वेतन का योग 352.161 करोड़ होता है. अब यदि एक व्यक्ति को 100 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से साल भर वेतन दिया जाये तो उसे मिलेगा 36,500 रूपये. तब इन 352.161 करोड़ रूपयों से 96 हजार 482 व्यक्तियों को प्रतिवर्ष 36,500 रूपयों का वेतन दिया जा सकता है. है ना कितनी नाइंसाफी! इसके बावजूद यह कहा जा रहा है कि वर्तमान समाज व्यवस्था ही मानव समाज के विकास की पराकाष्ठा है. इस वितरण व्यवस्था को बदलने की आवश्यकता नहीं है.
अब यदि फोब्स की 2011 की सारणी को देखा जाये तो भारत के लक्ष्मी मित्तल के पास 31.1 बिलियन डालर, मुकेश अंबानी के पास 27 बिलियन डालर, अजीम प्रेमजी के पास 16.8 बिलियन डालर, शशि एवं रवि रूइया के पास 15.8 बिलियन डालर, सावित्री जिंदल एवं परिवार के पास 13.2 बिलियन डालर, गौतम अदानी के पास 10 बिलियन डालर कुमार बिरला के पास 9.2 बिलियन डालर, अनिल अंबानी के पास 8.8 बिलियन डालर, सुनील मित्तल एवं परिवार के पास 8.3 बिलियन डालर तथा आदि गोदरेज एवं परिवार के पास 7.3 बिलियन डालर की परिसंपत्ति है. जिसका कुल योग 147.5 बिलियन डालर या 7522.50 अरब रूपये है.
इस प्रकार हम पायेंगे कि केवल दस परिवारों के पास ही 7522.50 अरब रूपयो की संपत्ति हो तो बाकी लोगों को क्या मिलेगा. इस प्रकार केवल वेतन ही नहीं, परिसंपत्तियों का वितरण भी समाज में असमान ढंग से हुआ है.
यदि हम भारत के सबसे चर्चित तथा महंगे घर की चर्चा करें तो वह है मुकेश अंबानी का दक्षिण मुबई स्थित एंटेलिया. जिसे 48,760 वर्ग फीट की जमीन में 4,000 करोड़ रूपये की लागत से बनाया गया है. इस घर में 27 मंजिले हैं, 600 नौकरों की फौज है और रहते केवल छः लोग हैं. इसमें तीन हैलीपैड तथा 165 कारों के लिये गैराज भी है. अब यदि सभी सुख सुविधाओं का इस प्रकार संकेन्द्रण हो जाये तो बाकी को क्या मिलेगा? उसके बाद भी गरीबी की रेखा के निर्धारण में चालबाजी की जा रही है.
अब जरा दूसरे वेतन भोगियों पर नजर डालें. 3 अप्रैल 2012 को राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री ने बताया कि 31 मार्च 2011 के आंकड़ों के अनुसार 3 करोड़ 35 लाख 79 हजार 831 लोगों ने आयकर दिया. अब यदि इसके आधार पर गणना की जाये तो क्या नतीजा निकलता है, यह देखना दिलचस्प होगा.
2010-11 में 1,60,101 रूपये वार्षिक पाने वाले को भी आयकर देना पड़ता था. यदि इसका प्रतिमाह का वेतन निकाला जाये तो वह 13,333.41 रूपयों का होता है. अब यदि इसे चार व्यक्ति के परिवार के लिये, प्रतिदिन के हिसाब से लिया जाये तो वह 111.11 रूपये प्रतिदिन@प्रति व्यक्ति का होता है. तो क्या 111.11 रूपये प्रतिदिन पर गुजारा बसर करने वालों को भी आयकर दाता होने के कारण गरीब न माना जाये. यदि इस गणना को 5,00,000 रूपये प्रतिवर्ष वेतन पाने वाले व्यक्ति के चार सदस्यों के लिये प्रतिदिन की गणना की जाये तो वह 347.20 रूपये प्रतिदिन@प्रतिव्यक्ति का होता है. इन्हें कुछ हद तक जीवन यापन के योग्य माना जा सकता है.
सच पूछा जाये तो ये सारे तथ्य बताते हैं कि ज्यादातर लोग गरीब हैं क्योंकि मुट्ठी भर लोग अमीर हैं. वेतन, परिसंपत्ति ही नहीं वरन् प्राकृतिक संसाधनों पर भी कब्जा जमाया गया है तथा बहुसंख्य आबादी को वंचित रखा गया है. बहस का विषय यह नहीं है कि गरीबी की रेखा क्या हो तथा कितने गरीब हैं. बहस इस मुद्दे पर होनी चाहिये कि गरीबी कैसे दूर की जाये. जिस प्रकार गरीबी की रेखा का निर्धारण किया जा रहा है, उसी प्रकार अमीरी की रेखा का भी निर्धारण किया जाये ताकि कोई उससे अधिक अमीर नहीं रह सके. यही आज की जरूरत है. मोंटेकनुमा बहस करने वाले, आप सुन रहे हैं ?